Page 16 - Musings 2022
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मंज़र

                                                 Atharva Ajit Patkhedkar
                                                    2019A3PS0298P

                                               हर बार महफिल नई बनती है,

                                                हर बार मंज़र नए बन जाते है,

                                                   मै वहीं हं, जो पहले था,

                                                         फिर भी,

                                               हर बार फिकवे नए बन जाते है।


                                                       ना जाने क्ों,


                                                 हर मंज़र को पाने क े बाद,
                                                   मुरादे नई बन जाती है,


                                                       ना जाने क्ों,
                                       हर मुराद अपना मुश्किल सा सिर साथ लाती है,


                                                       ना जाने क्ों,
                                         हर बार चला जाता हं होके  उम्मीदों पर सवार,

                                                  सागर से फमलन हो ना हो,

                                         सिर की कहानी ही खूबसूरत बन जाती है।
































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