Page 26 - Musings 2022
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दराज़
Arjun Jaideep Bhatnagar
मेरे कमरे में एक मेज़ है,
उस मेज़ में एक दराज़ है।
दराज़ में दबे हुए
मेरे कई अलफ़ाज़ हैं।।
बहुत कु छ है कह फदया
िब्ों को बहने फदया।
पर जो फदल में छु पा फलया
दबे हुए कई राज़ है।।
समाज में औदा भी है
कु छ इज़्ज़त है कु छ नाम है।
खुल गई दराज़ तोह
कहााँ हम सरफ़राज़ हैं।।
गममजोिी मुझ में भी थी
लपटें दहकती हुई।
अब लगता हम भी आम हैं
ख़ाक क्ा कु छ ख़ास हैं।।
जब भी आगे हम बढे
तोह हज़ार कोड़े ही पड़े।
मानो हमारी फज़न्दगी नहीं
जंग का एक आग़ाज़ है।।
प्यार फजस से फकआ
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