Page 27 - Musings 2022
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फकसी और की बाहों में

                                                  सोई हुई वो जान-ए-मन

                                                    मेरी ही गुलनाज है।।



                                                     सफदमयों की रातों में

                                                  कपकपाती रुआंसी सी।

                                                    छटपटाती सी ध्वफन

                                                   ये मेरी ही आवाज़ है।।


                                                   सभी आिावाफदयों से

                                                      मेरी दरकार है।

                                                 ख़ुिी का ओढ़ रखा सबने

                                                 बस एक बेहदा फलबास है।।



                                                  आकश्किक आाँफियों तले

                                                   सभी फदए हैं बुझ गए।

                                                  तुम तोह कह क े चल फदए

                                                 िायद तफबयत नासाज़ है।।


                                                    लोग कहते डटे रहो


                                                  लड़ो, फभड़ो, आगे बढ़ो।
                                                 पर आज भी सांस टू टी नहीं


                                                   क्ा ये नहीं इजाज़ है।।


                                                  मेरे कमरे में एक मेज़ है

                                                 उस मेज़ में एक दराज़ है।

                                                 डाल फदया है ताला उस पर

                                                दफ़न कर फदए अलफ़ाज़ हैं।।









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