Page 107 - Musings 2020
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ऐ     रे     साथी ,    सुन     रे ,  ज़रा   ठहर ,    पहर     एक     या     दो     पल ,    सही

                                             Saiyedul   Islam   2011PH030062P

                                       ऐ     रे     साथी ,    सुन     रे ,  ज़रा   ठहर ,    पहर     एक     या     दो     पल ,    सही
                                    आ     ल      ज़रा     सु ता ,    इस     छाँव     म  ,    इस     दर त     म  ,    इस     माटी     म  ,  सही

                                                  ज़रा     देख     िनगाह      पलट     के  ,
                                              था     बीज     कपोल ,    एक     न हा     पौधा ,    कभी
                                             थी     बंजर     ज़मीन ,    था     शोला     आसमां ,    कभी
                                                खना     था     िमटटी ,    पलकों     से     हमने
                                                  सींचा     था     इसे ,  लहू     से     अपने
                                                 है     खड़ा ,    आज     बन     छाँव ,    हमारी
                                                है     झुका ,    आज   बन     िफ़ज़ा ,    हमारी
                                                  ना     गया ,     यथ      यौवन ,    हमारा
                                                  नां   है ,     आँसा     कल ,    हमारा
                                      देख     ना     साथी ,    देख     रे ,  ज़रा   ठहर ,    पहर     एक     या     दो     पल ,    सही

                                                  गए ,    बदल     िदन     ज़ र ,    हमारे
                                       गयीं     गुज़र ,  वो     िखलिखलाहट  ,    िज़द    और     मुबािहस  ,    सही
                                            गया     आ   सलीक़ा ,    िलहाज़     और     स मान ,    सही
                                     पर     है     िनयम     प्रक ृ ित     का ,    बदलाव     का ,    हर     सुबह     की   सांझ     का
                                                   यों     थकता     है     तू ,    ऐ   साथी     रे
                                                   यों     गलता     है     तू ,    ऐ     साथी     रे
                                                   गया     बदल     िदन     ज़ र ,    है
                                                पर     है     बाक़ी ,    सुहाना     सफर ,    अभी

                                                 थे     चले ,    हम     इक   बग़ीचा     लगाने
                                                  थे     चले ,    हम     इक     बाग़     लगाने
                                                 बना     िलया     है ,    ये     चमन ,    अपना
                                                 जमा     िलया     है ,    ये   जड  ,    अपनी
                                                 है     ये ,    िमठास     पसीने     की ,    अपनी
                                                 है     ये ,  दा ताँ     मेहनत     की ,    अपनी
                                                है     ना ,    ये     खा मा ,    ना     है     ये     वैरा य
                                                ना     ही     है ,    ये   अ सुद गी     की     आमद
                                                   जाग     रे ,    ऐ     साथी ,    जाग     रे
                                                ना     रे ,    ना     डर     रे ,    मु तक़िबल ,    से
                                                  है     िकया ,    हर     जतन     सही ,    रे
                                               तो      यों     अब     घबराता     है     रे ,    कल     से
                                       ऐ     रे     साथी ,    सुन     रे ,  ज़रा   ठहर ,    पहर     एक     या     दो     पल ,    सही


                                               ह  ,    िदखते     खुश     दिरया ,    उस     पार     से
                                               ह  ,    लगते     िदलेर     दुिनया ,    उस   पार     से
                                                  ना     है ,    ये   सुक ू न   आज़ादी     की
                                                   ना     है ,    ये   ख़ुशी   जवानी     की
                                                  है ,    ये     एहसास     िज़ मेदारी     का
                                                    ह  ,    ये     बेिड़याँ      वाबों     की
                                                     ना     गए ,    वो     छोड़     हम
                                                   ना     जा     पाएंगे ,    वो     छोड़     हम




                                                                                                      107
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