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ऐ रे साथी , सुन रे , ज़रा ठहर , पहर एक या दो पल , सही
Saiyedul Islam 2011PH030062P
ऐ रे साथी , सुन रे , ज़रा ठहर , पहर एक या दो पल , सही
आ ल ज़रा सु ता , इस छाँव म , इस दर त म , इस माटी म , सही
ज़रा देख िनगाह पलट के ,
था बीज कपोल , एक न हा पौधा , कभी
थी बंजर ज़मीन , था शोला आसमां , कभी
खना था िमटटी , पलकों से हमने
सींचा था इसे , लहू से अपने
है खड़ा , आज बन छाँव , हमारी
है झुका , आज बन िफ़ज़ा , हमारी
ना गया , यथ यौवन , हमारा
नां है , आँसा कल , हमारा
देख ना साथी , देख रे , ज़रा ठहर , पहर एक या दो पल , सही
गए , बदल िदन ज़ र , हमारे
गयीं गुज़र , वो िखलिखलाहट , िज़द और मुबािहस , सही
गया आ सलीक़ा , िलहाज़ और स मान , सही
पर है िनयम प्रक ृ ित का , बदलाव का , हर सुबह की सांझ का
यों थकता है तू , ऐ साथी रे
यों गलता है तू , ऐ साथी रे
गया बदल िदन ज़ र , है
पर है बाक़ी , सुहाना सफर , अभी
थे चले , हम इक बग़ीचा लगाने
थे चले , हम इक बाग़ लगाने
बना िलया है , ये चमन , अपना
जमा िलया है , ये जड , अपनी
है ये , िमठास पसीने की , अपनी
है ये , दा ताँ मेहनत की , अपनी
है ना , ये खा मा , ना है ये वैरा य
ना ही है , ये अ सुद गी की आमद
जाग रे , ऐ साथी , जाग रे
ना रे , ना डर रे , मु तक़िबल , से
है िकया , हर जतन सही , रे
तो यों अब घबराता है रे , कल से
ऐ रे साथी , सुन रे , ज़रा ठहर , पहर एक या दो पल , सही
ह , िदखते खुश दिरया , उस पार से
ह , लगते िदलेर दुिनया , उस पार से
ना है , ये सुक ू न आज़ादी की
ना है , ये ख़ुशी जवानी की
है , ये एहसास िज़ मेदारी का
ह , ये बेिड़याँ वाबों की
ना गए , वो छोड़ हम
ना जा पाएंगे , वो छोड़ हम
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