Page 113 - Musings 2020
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काश   के

                                             Mayank   Verma   2017H1420183P

                                                    काश   के    ऎसा   हो   पाता
                                               म    मु क ु राकर   पास   आ   पाती   तु हारे
                                           हस-बोल   के    सुनतीं,   और   अपनी   क ु छ   सुनाती
                                    अंजान   नजर    औरों   की   तरह   मुझको   भी   नज़रअंदाज   कर   जातीं   l
                                    दो   ल ज़ों   की   गु तगू   से   दामन   पर   मेरे   खामखा   दाग   लगा   ना   होता
                                            काश   के    साँस   लेना   भी   मेरा,   जुम    ना   होता   l

                                                    काश     के      ऎसा     हो     पाता
                                         वािहश      मेरी    4    लोगों     की     सोच ,    की     मोहताज     ना     होतीं
                                        चूिड़याँ     और     पायल     मेरी ,    बेिड़यों     की     अवाज     ना     होतीं
                                              िसफ        ग दी     नज़रों     से     बचने     के      िलए ,
                                                  चु नी     मरा     िलवाज़     ना     होती
                                           िसफ        अनजान     उंगली     के      उठ     जाने     के      डर     से ,
                                                 दबी     हुई     मेरी     आवाज़     ना     होती
                                            काश     के      हर     िर ते     की     मया दा     के      खाितर ,
                                                 घूँघट     मेरा     मान     बना     ना     होता ,
                                            काश     के      साँस     लेना     भी     मेरा     जुम      ना     होता    |

                                    काश     के      दहेज     की     तरह ,    म      भी     पराया     धन     बन     कर     ना     रह     जाती ,
                                      बदले     मेरे     घर     के      साथ ,    काश     बदली     मेरी     पहचान     ना     जाती ,
                                     काश     के      मेरे     मंगलसूत्र     की     तरह     ही ,    मेरे     पित     के      गले     पर     भी
                                              दुिनया     मेरे     हक     की     िनशानी     देख     पाती
                                    िज मेदारी     जैसे     मेरी     बन     गयी ,    ' उनके  '    पिरवार     के      देखभाल     की ,
                                    थोड़ी     सी     िज मेदारी     उनके      िह से     मे     मेरे     पिरवार     की     भी     आ     जाती
                                         काश     के      िसंदूर     मेरे     नाम     का     वो     भी     मान     से     भर     पाते ,
                                   काश     के      मेरी ,    अिधकार     पाने     की     पात्रता     पर     सवाल     उठा     ना     होता
                                            काश     के      साँस     लेना     भी     मेरा     जुम      ना     होता।

                                           काश     के      िपता     ने     मुझे     भी     सहारा     माना     तो     होता
                                          मुझे     बाहर     के      अंधेरे     से ,    घर     पर     डराया     ना     होता ,
                                हर     ज रत     को     मेरी     पूरी     करते - करते ,    मुझे     ज रतमंद     बनाया     ना     होता    ,
                                         काश     के      आसमान     मेरा     रसोई     तक     िसमटा     ना     होता ,
                                       मुझे     पंख     फै ला     देने     से ,    दहलीज़     पर     ही     रोका     ना     होता।
                             काश     के      भाई     ने     कभी     तो     एक     रोटी     का     कौर     ही     सही ,    पकाकर     िखलाया     तो     होता ,
                                    उसने     पाबंिदयों     को     मेरे     जीवन     का     िह सा     मान     लेने     के      बजाय ,
                                           दुिनया     से     लड़ना     एक     बार     िसखाया     तो     होता।
                                            माँ     का     वा स य     थोड़ा     और     मीठा     हो     जाता ,
                                अगर     उसने     खुद     के      अि त व     की     तरह     मुझे     हर     बात     पर     दबाया     ना     होता।
                                    काश     के      मेरे     अपनों     की     मेरे     प्रित     िफकर     मेरी     शादी     से     हटकर ,
                                   मेरी     कामयाबी     को     लेकर ,    या     शायद     िसफ        मेरी     आजादी     की     हो     पाती
                                    काश     के      अि त व     मेरा     औरत     होने     से     पहले     एक     इंसान     का     होता
                                            काश     के      साँस     लेना     भी     मेरा     जुम      ना     होता।

                                   काश     के      होने     वाले     िशशु     की     तम नाओं     म      िजक ् र     मेरा     भी     आ     जाता ,
                                    मेरी     श ल     देखकर     िपता     की     उ सुकता     पर     कोहरा     सा     ना     छाता ,




                                                                                                      113
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