Page 114 - Musings 2020
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काश के माँ की कोक के िलए , मेरा अि त व गाली ना होती ,
काश के िकसी और की दरकार मे , बारी मेरी और मेरी बहनों की आई ना होती।
काश के कसूर मेरा , मेरे ' होने ' का ना होता ,
काश के साँस लेना भी मेरा जुम ना होता।
काश के मेरी ही कॉम , मेरी सबसे बड़ी दु मन ना होती ,
इितहास के प नों पर औरत की कलम सूखी ना होती ,
हर भार बोझ का , हर अहात दूसरो की सोच का ,
हर चीज़ पर ताना रोज का , हर अंगारा आक ् रोश का ,
सारांश अपने जीवन का बनाया ना होता।
खुद पर हुए अ याचार से डर कर , समाज से हारी ना होती ,
चीखकर इस समाज को िदखलाई तो होती ,
हैिसयत अपनी ' योिन ' से बङकर क ु छ और बनायी तो होती।
काश के औरत ने फै सला खुद का , खुद िलखा होता
तो साँस लेना भी मेरा जुम ना होता।
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